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सोमवार, 11 जून 2012

मुआवज़े का फार्म



एक उद्योगपति, एक व्यापारी, एक बैंक मैनेजर और एक सरकारी कर्मचारी गहरे दोस्त थे। एक दिन चारो अपनी-अपनी बिल्ली लेकर एक जगह इकट्ठे हुए और लगे उनकी ख़ूबियों का बखान करने।


फिर उद्योगपति ने अपनी बिल्ली को इशारा किया। वह दौड़ी और कुछ देर में मिठाई का डिब्बा लाकर मेज पर रख दिया।


व्यापारी के इशारे पर उसकी बिल्ली दूध से भरा गिलास ले आई और मेज पर रख दिया।


बैंक मैनेजर का इशारा पाकर उसकी बिल्ली एक प्लेट में केक सजाकर ले आयी और टेबल पर रख दिया।


बिल्लियों की इस भाग दौड़ के दौरान सरकारी कर्मचारी की बिल्ली एक कुरसी पर बैठी सोती रही। 


सरकारी कर्मचारी ने ज़रा ऊंची आवाज़ में कहा, “लंच टाइम।“ यह सुनते ही उसकी बिल्ली ने आंखें खोली, कान खड़े किए और टेबल पर रखी चीज़ों पर टूट पड़ी। सारा सामान चट कर जाने के बाद वह बाक़ी तीनों बिल्लियों के साथ लड़ने लगी। फिर घायल होने का दावा करते हुए मुआवज़े का फार्म भरा और Sick Leave लेकर घर चली गई।


बाबा का ढाबा



हमारे भारत देश में, फिर पनपे कई बाबा,
कृपा बरसाने के नाम पर, खोला ठगी का ढाबा।


खोला ठगी का ढाबा, बात समझ न आई,
आँखे सबकी दो, तीसरी कहाँ से आई ।


होनी है सो होकर रहेगी, चाहे खाओ लाख समोसे,
कर्म कर फल मिलेगा, क्यों किस्मत को को।


निर्मल है कि नोर्मल है, यह तो अब कौन जाने,
पर बाबा नहीं यह ठग है, हम भी अब यह माने ।


सब कुछ ठगी का जाल है, होता इनसे चमत्कार नहीं,
हमारी भावनाओ से ख, इनको ये अधिकार नहीं ।

धर्म आस्था के नाम पर, चलता करोडो का धंधा,
आओ इन्हें सबक सिखाए, कंधो से मिलाकर कन्धा।