जब भी कोई ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति लोगों में जागरूकता और संघर्ष की अलख जगा कर कुछ परिवर्तन करना चाहता है और इसके लिए स्वाभाविक सी बात है की उसे सत्ता में आना ही पड़ेगा, तो बहुतायत लोग ये कहने लगते हैं की ये इनका राजनीतिक स्वार्थ है |
विश्व के हर देशों ने जहाँ तरक्की हुई है चाहे वो अमेरिका हो (डब्लू टी. वाशिंगटन), चाहे जापान (मैजिनी), चाहे रूस, चाहे फ़्रांस हो, क्रांतिकारी ही सत्ता में आयें हैं और
जनता ने ससम्मान उन्हें सत्ता तक पहुचाया है और देश आगे बढ़ा है |
मगर भारत में ये सफल नहीं हो पाता, क्योंकि सच ये है की यहाँ की जनता आजादी के 65 बाद साल से राजनैतिक दलो और नेताओ का भ्रष्टाचार और कपट देखती रही है, उसे अब विश्वास ही नही होता कि अब नेक नीयत से कोई राजनीति कर सकता है .
राजनीति शब्द अब लोगो को गन्दगी और कीचड़ का पर्याय लगता है, हालत ये है कि धूर्तता और मक्कारी के पर्याय के रुप मे लोग आम जनजीवन मे शब्द प्रयोग मे लेते है कि "क्यो राजनीति कर रहा है"
राजनीति बुरी नही है लेकिन समस्या ये है कि साफ छवि के ईमानदार लोग भी कीचड़ मे दाग लगने के डर से अब इसमे नही घुसना चाहते.
आखिर कोई तो साफ करेगा इस कीचड़ को? किसी को तो उतरना होगा?
क्या हम हमारे को लोकतंत्र मौजुदा राजनैतिक दलो और भ्रष्ट नेताओ के भरोसे छोड़ दे? 65 साल से यही तो कर रहे है लेकिन नतीजा क्या निकला?
किसी पर तो भरोसा करना होगा. अगर प्रयास और प्रयोग ना हो तो आज तक दुनिया मे दिन ढलने के बाद अंधेरा छाया रहता, एडिसन कभी बल्ब नही बना पाता, वैज्ञानिक कोई आविष्कार नही कर पाते. क्रान्तियां नही हुई होती.
समाज जड़ बना रहता हम उसी मध्यकालीन बर्बरता मे जी रहे होते अगर पुनर्जागरण ना हुआ होता.
आज हमारे देश मे अब्दुल कलाम जैसा आदमी राष्ट्रपति नहीं बन पाता, एक नये राजनैतिक विकल्प के बनने से पहले उसकी भत्सर्ना शुरू हो जाती है, आन्दोलन करने वाले चेहरो के पीछे मीडिया ही पड़ी रहती है |
और सबसे एक ही प्रश्न पूछ जाता है की आपका राजनैतिक स्वार्थ है क्या?
और यही कारण है की 65 भारत वर्षों में पियासी विश्व के पे मानचित्र स्वाभिमान के साथ खड़ा कारखेलों हो सका और इसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ भारत की जनता है | जो बदलना नही चाहती, जिसे चुनाव में उम्मीदवार को योग्यता से अधिक धर्म, जाति के चश्मे से देखना आता है.
पात 2014 नहीं में क्या होने वाला है, जागरण हुआ और जनता मे समझा आयी तो कुछ अच्छा होगा वरना फिर 20 सालों तक के लिए टाय टाय फिस्स ........ जैसा की जयप्रकाश नारायणन के समय से होता आया है |
योगेश गर्ग (फेसबुक चौपाल)
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