सोमवार, 11 जून 2012

आइए, ऑनलाइन हो जाएं...


पूरी दुनिया ऑनलाइन होने की ओर भाग रही है. बची खुची कसर मेरे मोहल्ले के धोबी और नाई ने अभी हाल ही में पूरी कर दी. कल मैं प्रेस के लिए कपड़े डालने गया तो पाया कि उस दुकान का नया नामकरण हो गया है - सबसे-सफेद-धुलाई-डॉट-कॉम. बात दुकान के नए नामकरण की होती तो फिर भी ठीक था. काउंटर पर जहाँ अपने रामू काका कपड़े देते लेते थे और जिस होशियारी से हजारों की संख्या में एक जैसे कपड़ों में से प्रत्येक ग्राहक को उसके सही कपड़े निकाल देते थे, वहाँ एक अदद कंप्यूटर कब्जा जमाया बैठा था और सामने बैठा था एक ऑपरेटर.

मैंने उस ऑपरेटर से अपने कपड़े के बारे में पूछा. तो उसने मुझे ज्ञान दिया कि अब दुकान फुल्ली ऑनलाइन हो गई है और अब आप घर बैठे अपने कंप्यूटर से अपन कपड़े की वर्तमान स्थिति के बारे में पता कर सकते हैं कि वो धुल चुकी है, इस्तरी के लिए गई है या फिर अभी धोबी-घाट में पटखनी खा रही है. तो मैंने उससे पूछा कि भइए, जरा अपने कंप्यूटर में देख कर मेरे कपड़े की वर्तमान पोजीशन बताओ जो मैंने इस्तरी के लिए पिछले दिन दिए थे. वह पलट कर बोला घंटे भर बाद आना, अभी तो सर्वर डाउन है.

मोहल्ले के नाई की स्थिति भी कोई जुदा नहीं थी. जब सिर के चंद बचे खुचे बाल भी जब बीवी को लंबे लगने लगे और उन्होंने कई कई मर्तबा टोक दिया तो लगा कि अब तो कोई चारा बचा नहीं है तो नाई की दुकान की ओर रूख किया गया. महीने भर से नाई की दुकान की ओर झांका नहीं था और जब आज पहुंचा तो वहाँ मामला कायापलट सा था.

एक बड़े मॉनीटर के सामने बिल्लू बारबर व्यस्त था. वो मेरे मोहल्ले के ही एक मजनूँ टाइप बेरोजगार को स्क्रीन पर विभिन्न हेयरस्टाइल उसके चेहरे के चित्र पर जमा-जमा कर बता रहा था कि कैसे वो इस कंप्यूटर में डले इस लेटेस्ट सॉफ़्टवेयर के जरिए उसका लेटेस्ट टाइप का हेयरस्टाइल बना देगा जिससे वो मजनूँ मोहल्ले में और ज्यादा लेटेस्ट हो जाएगा. मजनूँ बड़ी ही दिलचस्पी से हर हेयरस्टाइल को दाँतों तले उंगली दबाए हुए देख रहा था और कल्पना कर रहा था कि यदि वो ये वाला नया हेयरस्टाइल अपना लेता है तो प्रतिमा और फातिमा और एंजलीना पर उसके इस नए रूप का क्या प्रभाव पड़ेगा.
बहरहाल, मुझे अपने बाल कटवाने थे. तो मैंने बिल्लू चाचा की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा. इससे पहले बिल्लू काका मुझे देखते ही कुर्सी पेश करते थे और यदि व्यस्त रहते थे तो बोल देते थे कि घंटे आधे घंटे में वापस आ जाइए, तब तक वो लाइन में पहले से लगे ग्राहकों को निपटा लेगा. परंतु अभी बिल्लू काका का हिसाब बदला हुआ था. उन्होंने गर्व से बताया कि उनकी शॉप अब ऑनलाइन हो गई है. बाल कटवाने, दाढ़ी बनवाने, बाल रंगवाने और यहाँ तक कि चंपी करवाने के लिए भी पहले ऑनलाइन बुकिंग करनी पड़ेगी, समय लेना होगा तब बात बनेगी. यदि मैं आपको अपना पुराना ग्राहक मान कर बाल काटने लगूं, और इतने में कोई ऑनलाइन बुकिंग इस समय की हो जाए और कोई ऑनलाइन बुकिंग धारी ग्राहक आ जाए तब तो मेरी बहुत भद पिटेगी. मैं ऐसा नहीं कर सकता. मामला ऑनलाइन का है.

मैंने विरोध किया कि काका, मेरे पास न तो कंप्यूटर है न मुझे कंप्यूटर चलाना आता है. मैं ऐसा कैसे करूंगा. बिल्लू काका को खूब पता था कि मैं झूठ बोल रहा हूँ. मगर फिर भी उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया और बात स्पष्ट किया - अब इस दुकान की सेवा लेनी होगी तो पहले ऑनलाइन बुकिंग तो करवानी ही होगी. यदि आपके पास कंप्यूटर नहीं है तो क्या हुआ. पास ही सुविधा केंद्र है, साइबर कैफे है, वहाँ जाइए और वहाँ से बुकिंग करिए.

तो मैंने सोचा कि चलो पास के साइबर कैफ़े से बिल्लू काका के सेलून में बाल काटने की बुकिंग कर लेते हैं. क्योंकि यदि आज बगैर बाल कटवाए वापस गए तो घर पर खैर नहीं. और, बीबी को यह बात बताएंगे कि अब ऑनलाइन बुक कर बाल कटवाने होंगे, जिसमें समय लगेगा तो वो किसी सूरत ये बात मानेगी ही नहीं और ऊपर से निश्चित ही अपना तकिया कलाम कहने से नहीं चूकेगी - क्या बेवकूफ बनाने के लिए मैं ही मिली थी!
साइबर कैफ़े में लंबी लाइन लगी थी. मैं भी कोई चारा न देख लाइन में लग गया. बड़ी देर बाद मेरा नंबर आया तो मैंने कैफ़े वाले से कहा कि वो बिल्लू बारबर के यहाँ बाल कटवाने की मेरी बुकिंग कर दे. उसने ढाई सौ रुपए मांगे. मैं यूं चिंहुका जैसे कि मेरे बाल विहीन सर पर ओले का कोई बड़ा टुकड़ा गिर गया हो. ढाई सौ रूपए? मैं चिल्लाया, और पूछा कि इतने पैसे किस बात के?
साइबर कैफ़े वाले ने मुझे अजीब तरह से घूरते हुए बताया कि पचास रुपए तो बिल्लू बारबर के यहाँ बाल कटवाने का दर है. बाकी दो सौ रुपए साइबर कैफ़े की आधिकारिक सुविधा शुल्क है.
मैं भुनभुनाने लगा और बोला कि यह तो सरासर लूट है. तो साइबर कैफ़े वाले ने कहा कि यदि बुक करवाना है तो जल्दी बोलो नहीं तो आगे बढ़ो. फालतू टाइम क्यों खराब करते हो. वैसे भी सुबह से बंद पड़ा सर्वर अभी चालू हुआ है और अटक फटक कर चल रहा है. मेरे पीछे लंबी लाइन में और भी दर्जनों लोग खड़े थे और वे जल्दी करो जल्दी करो का हल्ला मचा रहे थे. तमाम दुनिया ऑनलाइन हुई जा रही थी तो ये बवाल तो खैर मचना ही था.
सुबह का निकला शाम को जब बाल कटवा कर वापस घर लौट रहा था तो पड़ोस में रहने वाला एक छात्र बेहद खुश खुश आता दिखाई दिया. वो पढ़ने लिखने में बेहद फिसड्डी था और मैट्रिक में वो इस साल तीसरी कोशिश में पास हुआ था.
मैंने उससे पूछा कि भई क्या बात है बेहद खुश नजर आ रहे हो. तुम्हारा रिजल्ट निकले तो अरसा बीत गया मगर खुशी अभ भी उतनी ही है जैसे जश्न मनाने और लड्डू बांटने के दिन हैं...

अरे अंकल, आप भी क्या मजाक करते हैं. उसने मेरी बात काटी और आगे बोला - मुझे कॉलेज में एडमीशन लेना है और अब मुझे बढ़िया कॉलेज में अपने मनपसंद विषय में दाखिला मिल जाएगा.
मैंने कहा - वो कैसे? तुम्हारा तो थर्ड डिवीजन है.
तो क्या हुआ अंकल – वो खुशी से चिल्लाया - इस साल से कॉलेज मे एडमीशन ऑनलाइन हो गए हैं!
ओह, तो ये बात थी.
दुनिया ऑनलाइन हुए जा रही है. नर्सरी और केजी 1 के एडमीशन भी. सवाल ये है कि आप ऑनलाइन हुए या नहीं?

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