हमारे भारत देश में, फिर पनपे कई बाबा,
कृपा बरसाने के नाम पर, खोला ठगी का ढाबा।
खोला ठगी का ढाबा, बात समझ न आई,
आँखे सबकी दो, तीसरी कहाँ से आई ।
होनी है सो होकर रहेगी, चाहे खाओ लाख समोसे,
कर्म कर फल मिलेगा, क्यों किस्मत को को।
निर्मल है कि नोर्मल है, यह तो अब कौन जाने,
पर बाबा नहीं यह ठग है, हम भी अब यह माने ।
सब कुछ ठगी का जाल है, होता इनसे चमत्कार नहीं,
हमारी भावनाओ से ख, इनको ये अधिकार नहीं ।
धर्म आस्था के नाम पर, चलता करोडो का धंधा,
आओ इन्हें सबक सिखाए, कंधो से मिलाकर कन्धा।
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