बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

निशान

निशान

 


आज सुबह

जब पलकों की चादर

आंखों से हटी
कुछ अलग था नज़ारा,
खिड़की से धूप नहीं
बह रही थी
ठंडी हवा,
दरवाज़े के पास
पड़ी थी कुछ
गीली-पीली पत्तियां,
टपक रही थी मचान से
आवाज़े महीन
और
दहलीज़ पर जमा था
मटमैला पानी,
कुछ नन्ही बूंदे
शीशे पर घर बनाए,
पड़ोस के पेड़ पर
बैठे थे
पर फरफराते,
कुछ पक्षी,
घास पर उतरी
हीरे सी बूंदें,
और अंत में
एक गीली मुस्कान
चेहरे पर
औऱ ज़हन में ख्याल
समेट लूं
इन निशानों को
जिन्हें छोड़ गई
कल रात बारिश..!







 

 

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